जब भी हम जेब में पड़े सिक्कों की खनक सुनते हैं, तब शायद ही हम यह सोचते हैं कि इन सिक्कों को बनाने में सरकार को कितना खर्च आता है। विशेष रूप से, एक रुपये का सिक्का – जो सबसे आम और न्यूनतम मूल्य का सिक्का है – उसकी वास्तविक निर्माण लागत जानना काफी रोचक हो सकता है।
इस ब्लॉग में हम यही जानने वाले हैं: “एक रुपये के सिक्के को बनाने में सरकार को कितने पैसे खर्च करने पड़ते हैं?” और साथ ही इससे जुड़ी कुछ और जरूरी बातें।
एक रुपये के सिक्के की निर्माण लागत क्या है?
सरकार की ओर से जारी विभिन्न रिपोर्टों और RTI (Right to Information) से मिली जानकारी के अनुसार, एक रुपये के सिक्के को बनाने की लागत लगभग ₹1.11 से ₹1.58 तक होती है।
यह आंकड़ा कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे:
मेटल की कीमत (जैसे स्टील, नikel आदि)
मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रिया (ढलाई, कटाई, मोल्डिंग)
ट्रांसपोर्ट और डिस्ट्रीब्यूशन
सिक्योरिटी और हैंडलिंग
यानी, सरकार को एक रुपये का सिक्का बनाने में एक रुपये से ज्यादा खर्च करना पड़ता है!
सिक्के बनाने की प्रक्रिया
भारतीय सिक्के मुख्यतः चार मिंट्स (coin mints) में बनाए जाते हैं:
मुंबई
हैदराबाद
कोलकाता
नोएडा
यहां पर सिक्कों के डिजाइन, मेटल कटिंग, मोल्डिंग, छपाई और क्वालिटी टेस्टिंग की पूरी प्रक्रिया होती है। एक रुपये के सिक्के में अब स्टील का ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, ताकि लागत को थोड़ा कंट्रोल किया जा सके।
क्या एक रुपये का सिक्का बनाना घाटे का सौदा है?
हां, कुछ हद तक देखा जाए तो एक रुपये का सिक्का बनाना सरकार के लिए नुकसानदायक हो सकता है, क्योंकि:
निर्माण लागत ₹1 से ज्यादा है
एक रुपये की क्रय क्षमता (purchasing power) समय के साथ घटती जा रही है
लेकिन फिर भी सिक्कों की जरूरत रोजमर्रा के लेनदेन में बनी हुई है
सरकार इसे लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट की तरह देखती है – जहां सिक्के वर्षों तक चलते हैं, बार-बार छपाई की जरूरत नहीं होती।
रोचक तथ्य (Interesting Facts)
एक रुपये के सिक्के की वास्तविक कीमत, निर्माण लागत से ज्यादा होती है क्योंकि उसमें लॉजिस्टिक, सिक्योरिटी और हैंडलिंग का भी खर्च होता है।
अमेरिका जैसे देशों में भी कुछ सिक्कों की मैन्युफैक्चरिंग लागत उनकी वैल्यू से ज्यादा है – जैसे वहां 1 सेंट को बनाने में ~1.7 सेंट का खर्च आता है।
पुराने जमाने में एक रुपये का सिक्का चांदी से बना करता था – अब वह सिर्फ स्टील व मिश्रित धातुओं से बनता है।
क्या भविष्य में एक रुपये के सिक्के बंद हो सकते हैं?
हालांकि इसकी संभावना कम है, लेकिन कुछ देशों में low denomination coins को बंद कर दिया गया है क्योंकि उनकी प्रोडक्शन लागत बहुत ज्यादा हो गई थी। भारत में भी डिजिटल ट्रांजैक्शन बढ़ने के साथ-साथ छोटे सिक्कों का चलन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।
लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और कैश-निर्भर आबादी के लिए ₹1 के सिक्के आज भी बेहद जरूरी हैं।
निष्कर्ष
एक रुपये का सिक्का भले ही आपके लिए “छोटी चीज़” हो, लेकिन उसे बनाने में सरकार को ज्यादा खर्च उठाना पड़ता है। यह एक ऐसा निवेश है, जिसे हर आम आदमी की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर किया जाता है।
अगली बार जब आपके हाथ में ₹1 का सिक्का आए – तो जानिए, वो सिर्फ एक रुपये का नहीं, बल्कि सवा रुपये से भी ज्यादा का पड़ा है सरकार को!
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